पितर कौन होते हैं और तर्पण किन को दिया जाता, जाने
पितर
शास्त्रों के प्रमाणानुसार, हमारे एक साल का समय पितरों का एक अहोरात्र ( एक दिन – रात ) होता है। मकर संक्रान्तिको पितृलोकमें सारे पितर सो जाते हैं|और कर्कट संक्रान्तिको जगजाते हैं, उठजाते हैं। फिर कन्या राशि की अमावसवाला महीना, (आश्विन) उनके भोजन का समय बनता है।
भोजन के लिए वे अपने अपनोंके यहां पहुंचते हैं। इन दिनों एक – एक पितरोंका गोत्र, नाम, अपना सम्बन्ध उच्चारण करके तर्पणके पूर्वक पितरोंकी संतृप्तिके लिए श्राद्धपूर्वक ब्राह्मण भोजन कराया जाता है|
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पितरोंके उद्देश्यसे यथाशक्ति जलपात्र, अन्न – वस्त्रादिका दान कियाजाता है।
पितर कौन होते हैं तर्पण के योग्य पितर
ताताम्बात्रितयं सपत्नजननी,
मातामहादित्रयम्।
सस्त्रि स्त्रीतनयादि तातजननी,
स्वभ्रातरस्तत्स्त्रियः॥
ताताम्बात्मभगिन्यपत्यधवयुग्-
जायापिता सद्गुरुः।
शिष्याप्ताः पितरो महालयविधौ,
तीर्थे तथा तर्पणे॥
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अर्थात्:-पिता, दादा, परदादा।
माता, दादी, परदादी।
विमाता (सौतेली माँ)।
नाना, परनाना, वृद्धपरनाना।
नानी, परनानी, वृद्धपरनानी।
स्त्री (पत्नी), पुत्र – पुत्री।
ताऊ – ताई, चाचा – चाची तथा इनके पुत्र।
मामा – मामी, ममेरा भाई।
अपने बडे – छोटे भाई – भाभी तथा इनके पुत्र।
फूफा – बूआ तथा इनके पुत्र।
मौसी – मौसा तथा इनके पुत्र।
अपनी बहनें – बहनोई तथा इनके पुत्र।
श्वशुर – सासू।
सद्गुरु – गुरुपत्नी।
शिष्य।
संरक्षक।
मित्र, तथा
सेवक।
गृहस्थियोंके लिये ये सब पितृ होते हैं।
अतः श्राद्धादिकोंके अवसरमें इन सबको तर्पण [जलदान] किया जाना चाहिए।
