रुद्राभिषेक क्या है – Rudrabhishek के आश्चर्यजनक लाभ
रुद्राभिषेक
रुद्र अर्थात् भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक – दूसरेके पर्यायवाची हैं। शिवको ही ‘रुद्र’ कहाजाता है, क्यों कि “रुतं – दु:खम्, द्रावयति – नाशयतीति रुद्र:” यानि भोले बाबा अपने भक्तोंके सभी प्रकारके दु:खोंको नष्ट कर देते हैं, वैसे तो हमें रुद्राभिषेक कराने के लिए केवल सावन का महीना देखने की आदत है। विशेष करके सावनके महीने में भूतभावन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक किया जाता है। परन्तु वह ऐसा नहीं है कि “सावनका महीना ही रुद्राभिषेक के लिए माना जाता हो, बाकी और महीनों में रुद्राभिषेक नहीं कराना चाहिए। किन्तु रुद्राभिषेक कराने का हरेक महीने में, हरेक अवसरों में कराने का विधान है। परन्तु सामान्य अवस्था में, सामान्य समय में रुद्राभिषेक करने के लिए शिवजी के वास देखने होते हैं। शिवजी कहां पर रहे होते हैं, वहां से हमारे घर की पूजा [रुद्राभिषेक] में शिवजी को हमने बुला लिया, तो फल हमें उसी प्रकार का मिलेगा, उनके वास के अनुसार। इस लिए शिव वास देख कर के ही रुद्राभिषेक अर्थात् शिव की विशेष पूजा करने का निर्देश शास्त्रों ने किया है।
रुद्राभिषेक 3 प्रकार के होते हैं
1- स्वाहात्मक,
2- जपात्मक
3- धारात्मक
स्वाहात्मक- काम्य उद्देश्यकी प्राप्तिके लिए तत्तत् सामग्रियोंका, रुद्राष्टाध्यायीके प्रत्येक मन्त्रोंके द्वारा हवन कियाजाता है।
जपात्मक – उल्लिखित प्रयोजनकी सिद्धिके लिये, उल्लिखित संख्यामें प्रत्येक मन्त्रोंका जप कियाजाता है।
धारात्मक- किसी विशेष प्रयोजन की सिद्धिके लिए किसी विशेष द्रव्य – पदार्थ के द्वारा शिवलिंग के ऊपर धारा लगायी जाती है, रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रोंको पढते हुए।
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हमारे धर्मग्रन्थों के अनुसार हमारे पूर्वजों के द्वारा व हमारे खुद के द्वारा किए गये पुण्य – पाप ही हमारे सुख – दु:खों के कारण बनते हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक करने – कराने से हमारी कुण्डली में मौजूद पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म होजाते हैं। और साधकमें शिवत्वका उदय होता है तथा भगवान शिवका शुभाशीर्वाद भक्तको प्राप्त होता है। और ऐसे साधकोंके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहाजाता है कि एक मात्र सदाशिव रुद्रके पूजनसे सभी देवताओंकी पूजा स्वत: होजाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद्
में शिव के बारेमें कहा गया है – कि
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:
[अर्थात् सभी देवताओंकी आत्मामें रुद्र अवस्थित हैं, और सभी देवता रुद्रकी आत्मा हैं।]
हमारे शास्त्रोंमें विविध कामनाओंकी पूर्तिके लिए रुद्राभिषेकके पूजनके निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्रीका प्रयोग बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधिसे तथा विविध मनोरथोंको लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथकी पूर्तिके लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधिसे रुद्राभिषेक किया जाता है।
परन्तु, विशेष अवसरपर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्वोंके दिनोंमें मन्त्रपूर्वक, गोदुग्धमें अन्य द्रव्य मिलाकर अथवा केवल दूधसे भी अभिषेक कियाजाता है।
विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और शक्करसे अलग – अलग अथवा सबको मिलाकर पञ्चामृतसे भी अभिषेक कियाजाता है।
तन्त्रोंमें रोगनिवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओंसे भी अभिषेक करनेके विधानकी चर्चा कीगयी है।
अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना
विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है। उनमें से कुछ द्रव्य और लाभ की जानकारी इस प्रकार है
1-राज्यमें अनावृष्टि हो रही हो, राज्यके द्वारा जलसे रुद्राभिषेक करनेपर सुवृष्टि होती है।
2-कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग – दुःखसे छुटकारा मिलता है।
3-दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
4-गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
5-मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन की वृद्धि होती है
6-तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
7-इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।
8-दूध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति, प्रमेह रोग की शान्ति तथा कई मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
9-गंगाजल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।
10– शर्करा मिश्रित दूध से अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।
11- घीसे अभिषेक करने से वंश का विस्तार होता है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है, परन्तु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाय, तो बहुत ही शीघ्र चामत्कारिक शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं, और रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।
हमारे पूर्वजों (ऋषि – मुनियों) ने वेदों में इसकी प्रशंसा की है। पुराणों में तो इससे सम्बन्धित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है, कि रावण ने अपने दशों शिरों को काटकर उस के ( रुधिर ) रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा उन शिरों को हवन की अग्निको अर्पित कर दिया था, जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। वृकासुर अर्थार्त बाद में इसका नाम भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया, तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बनगया।
कुण्डली में बने कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकशान, शिक्षा में रुकावट आदि सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करते हुए आप के अभीष्ट सिद्धि के लिए रुद्राभिषेक फलदायक है। अपनी कामना के अनुसार रुद्राभिषेक की अलग – अलग सामग्री हुआ करती हैं। उन सामग्रियोंका प्रयोग करते हुए धारात्मक अभिषेक करनेपर अपने उद्देश्य की परिपूर्ति अवश्य हो जाती है, इसमें कोई शंका नहीं।
दूसरी बात – प्रतिष्ठित मन्दिरों को छोड़कर, अलग स्थान में – जैसे अपना घर आदि जगहों में रुद्राभिषेक करने के लिए शिवजी का आवाहन किया जाता है। आवाहन करने के लिए शिवजी का वास देखना होता है। मेरु तन्त्र में शिवजी के वासका उल्लेख किया है और उस वास में से बुलाने के अनुसार का फल भी बताया गया है। वह वास और फल तिथियों को लेकर के होता है। इसलिए अपनी कामना के अनुसार शिववास देखा जाता है।
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शुक्लपक्ष की तिथियां –
01+8+15 – श्मशाने = मृत्यु:
02+9 – गौर्या सह = लाभ:, शुभम्
03+10 – सभायां = तापम्
04+11 – क्रीडायां = सन्तान हानिः
05+12 – कैलाशे = सुखं, शुभम्
06+13 – वृषे = श्रीप्राप्तिः
07+14 – भोजने = कष्टम् और –
दूसरे मतमें भोजनप्राप्ति
कृष्णपक्ष की तिथियां –
07+14 – श्मशाने = मृत्युः
01+08+30 – गौर्या सह = लाभः, शुभम्
02+9 – सभायां = तापः
03+10 – क्रीडायां = सन्तान हानिः
04+11 – कैलाशे = सुखं, शुभम्
05+12 – वृषे = श्रीप्राप्तिः
06+13 – भोजने = कष्टम् और – दूसरे मत में – भोजनप्राप्ति इति
ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा मासशिवरात्रि, महाशिवरात्रि, किसी व्यक्तिका जन्मोत्सव, प्रदोष, श्रावणके सोमवार आदि पर्वोंमें शिववासका विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंगका अभिषेक आशुतोष शिवको शीघ्र प्रसन्न करके साधकको उनका कृपापात्र बनादेता है, और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त होजाती हैं।
अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेकसे मनुष्यके सारे पाप – ताप धुल जाते हैं। स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्माने भी कहा है, कि जब हम अभिषेक करते हैं, तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेकको ग्रहण करते हैं। संसारमें ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें शिवार्चन व रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता हो।
आचार्य पंकज पुरोहित, 9868426723