शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर उत्तराखंड | Kalimath Temple
शक्तिपीठ कालीमठ
शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत पड़ता है केदारनाथ जाते हुए गुप्तकाशी के पास से यहां के लिए रास्ता अलग हो जाता है मंदिर में नवरात्रों के दिनों बहुत भीड़ होती है हिंदुओं का नवरात्रि एक प्रमुख पर्व है।
नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति देवी के नौ शक्तियों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है।
नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिसे नवदुर्गा कहते हैं। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस जगह कैसे पहुंचे इस पर हमने डॉक्यूमेंट्री बनाई है आर्टिकल के अंत में वीडियो दे रखी है
नवरात्रियों मैं देवी पूजन के साथ इन नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है. शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है. देवी के इन स्वरूपों की पूजा नवरात्रि में विशेष रूप से की जाती है|
नौ देवियाँ है :-
1-शैलपुत्री
2-ब्रह्मचारिणी
3-चंद्रघंटा
4-कूष्माण्डा
5-स्कंदमाता
6-कात्यायनी
7-कालरात्रि
8-महागौरी
9-सिद्धिदात्री
शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर-रुद्रप्रयाग शक्तिपीठ कालीमठ मंदिर का स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के 62वें अध्याय में मंदिर का वर्णन है। साथ ही यहां शिलालेखों में पूरा वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य की ओर से की गई थी कालीमठ मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहाँ कोई मूर्ति नहीं की जाती है , मंदिर के अन्दर भक्त कुंड की पूजा करते है यह कुंड रजतपट श्री यन्त्र से ढखा रहता है।
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केवल पूरे वर्ष में शारदे नवरात्री में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और दिव्य देवी को बाहर ले जाया जाता है और पूजा केवल मध्यरात्रि में की जाती है, इस पूजा में केवल मुख्य पुजारी मौजूद रहते है |
कालीमठ मंदिर सबसे प्रसिद मंदिरों में से एक है, जहाँ शक्ति ही शक्ति है | यह ऐसी जगह है जहां देवी माता काली, अपनी बहनों माता लक्ष्मी, और माँ सरस्वती, के साथ स्थित है।
शक्तिपीठ कालीमठ में महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है | इन मंदिरों का निर्माण उसी विधान से संपन्न है जैसा की दुर्गासप्तशती के वैकृति रहस्य में बताया है अर्थात बीच में महालक्ष्मी, दक्षिण भाग में महाकाली और वाम भाग में महासरस्वती की पूजा होनी चाहिए माना जाता है यहां मां काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था, जिसके देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित है।

शक्तिपीठ कालीमठ में पूजा महत्व
नवरात्रों के समय महाअष्टमी को रात्रि में यहां महानिशा की पूजा होती है। रात्रि के चारों पहर लोग उपवास रखकर पूजा करते हैं। इस पूजा का सबसे अधिक महत्व है।
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माता का चढावा
इस सिद्धपीठ में पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु माता को कच्चा नारियल व देवी के श्रृंगार से जुड़ी सामग्री जिसमें चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं।

शक्तिपीठ कालीमठ केसे पहुंचे-
हवाई अड्डा
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जोलीग्रांड (देहरादून) है। जो कि रूद्रप्रयाग से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेलवे मार्ग
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग
कई मार्ग हैं। जहां से रोजाना रूद्रप्रयाग के लिए बसें चलती है। जैसे- देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, पौढ़ी, जोशीमठ, गोपेश्वर, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नैनीताल, अल्मोड़ा, दिल्ली। रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड हाइवे के जरिए 42 किमी गुप्तकाशी पहुंचे। उसके बाद गुप्तकाशी से सड़क मार्ग से मात्र आठ किमी सफर तय कर कालीमठ मंदिर पहुंचा जा सकता है।